जाट इतिहास
महावीर हरवीर सिंह गुलिया द्वारा तैमूर का वध व वीरों का बलिदान
तैमूर ने भारत पर आक्रमण कर दिया और वह दिल्ली तक लूट पाट व रक्त पात करता हुआ पहुंच गया था।
इसी बीच राजा देवपाल राणा ने चौधरी धर्मपाल देव सिंह के सहयोग से सेना तैयार कर ली व दानवीर चौधरी कर्मपाल सिंह के सहयोग से सेना के लिए अनाज रसद का प्रबंध किया। फिर उनकी सेना ने तैमूर पर धावा बोल दिया
# दिल्ली_युद्ध – जिस समय तैमूर दिल्ली को लूट रहा था तथा जनता को तलवारों के घाट
उतार रहा था तब पंचायती सेना के 20,000 वीरों ने रात्रि समय 3 बजे दिल्ली की 52,000 तैमूरी सेना पर भीषण आक्रमण कर दिया और तैमूर के 9000 सैनिकों को काटकर यमुना नदी में बहा दिया। प्रातःकाल होते ही यह पंचायती वीर सैनिक नगर की दीवारों से बाहर हो गये। इस प्रकार 3 दिन युद्ध होता रहा। तैमूर तंग आकर दिल्ली छोड़कर मेरठ की ओर बढ़ा।
# मेरठ_युद्ध – तैमूर ने अपनी बड़ी संख्यक एवं शक्तिशाली सेना, जिसके पास आधुनिक शस्त्र थे, के साथ दिल्ली से मेरठ की ओर कूच किया। इस क्षेत्र में तैमूरी सेना को पंचायती सेना ने दम नहीं लेने दिया। दिन भर युद्ध होते रहते थे। रात्रि को जहां तैमूरी सेना ठहरती थी वहीं पर पंचायती सेना धावा बोलकर उनको उखाड़ देती थी।
वीरांगना हरदेई जाट के नेतृत्व में वीर देवियां अपने सैनिकों को खाद्य सामग्री एवं युद्ध सामग्री बड़े उत्साह से स्थान-स्थान पर पहुंचाती थीं। शत्रु की रसद को ये वीरांगनाएं छापा मारकर लूटतीं थीं। आपसी मिलाप रखवाने तथा सूचना पहुंचाने के लिए 500 घुड़सवार अपने कर्त्तव्य का पालन करते थे। रसद न पहुंचने से तैमूरी सेना भूखी मरने लगी। उसके मार्ग में जो गांव आता उसी को नष्ट करती जाती थी। तंग आकर तैमूर हरद्वार की ओर बढ़ा।
# हरिद्वार_युद्ध – मेरठ से आगे मुजफ्फरनगर तथा सहारनपुर तक पंचायती सेनाओं ने तैमूरी सेना से भयंकर युद्ध किए तथा इस क्षेत्र में तैमूरी सेना के पांव न जमने दिये। प्रधान एवं उपप्रधान और प्रत्येक सेनापति अपनी सेना का सुचारू रूप से संचालन करते रहे। हरद्वार से 5 कोस दक्षिण में तुगलुकपुर-पथरीगढ़ में तैमूरी सेना पहुंच गई। इस क्षेत्र में पंचायती सेना ने तैमूरी सेना के साथ तीन घमासान युद्ध किए।
उप-प्रधानसेनापति महावीर # हरवीर_सिंह गुलिया ने अपने पंचायती सेना के 25,000 वीर योद्धा सैनिकों के साथ तैमूर के घुड़सवारों के बड़े दल पर भयंकर धावा बोल दिया जहां पर तीरों* तथा भालों से घमासान युद्ध हुआ। इसी घुड़सवार सेना में तैमूर भी था। तैमूर की सेना तीतर बीतर हो रही थी इस्लामिक आतंकियों को हरवीर गुलिया गाजर मूली की तरह काट काट फेंक रहा था।
हरवीर गुलिया की इस 25 हजारी सेना ने तैमूर हजारों सैनिकों को काट दिया था।
तैमूर हड़बड़ा सा गया था और इसी बीच उसका समाना सेनापति महावीर हरवीर सिंह गुलिया से हो गया।गुलिया के प्रहारों से घबराकर तैमूर सुरक्षित घेरे में पहुंच गया था।
लेकिन महान यौद्धा हरवीर ने अपनी जान की परवाह किये बिना आगे बढ़कर शेर की तरह दहाड़ करते हुए तैमूर के घेरे में घुस गया और तैमूर की छाती में
# भाला गाड़ दिया, जिससे वह घोड़े से नीचे गिरने ही वाला था कि उसके एक सरदार खिज़र खान ने उसे सम्भालकर घोड़े से अलग कर लिया। (तैमूर इसी भाले के घाव से ही अपने देश समरकन्द में पहुंचकर मर गया)।
महावीर योद्धा हरबीरसिंह गुलिया पर शत्रु के 60 भाले तथा तलवारें एकदम टूट पड़ीं जिनकी मार से यह योद्धा अचेत होकर भूमि पर गिर पड़ा।
(1) उसी समय प्रधान सेनापति # जोगराज सिंह ने अपने 22000 मल्ल योद्धाओं के साथ शत्रु की सेना पर धावा बोलकर उनके 5000 घुड़सवारों को काट डाला। जोगराजसिंह ने स्वयं अपने हाथों से अचेत हरबीरसिंह को उठाकर यथास्थान पहुंचाया। परन्तु कुछ घण्टे बाद यह वीर योद्धा वीरगति को प्राप्त हो गया। जोगराजसिंह को इस योद्धा की वीरगति से बड़ा धक्का लगा।
उनके शरीर पर 45 घाव आये लेकिन वे अंत तक लड़ते रहे।प्रधान सेनापति की वीरगति – वीर योद्धा प्रधान सेनापति जोगराजसिंह गुर्जर युद्ध के पश्चात् ऋषिकेश के जंगल में स्वर्गवासी हुये थे।
(2)हरद्वार के जंगलों में तैमूरी सेना के 2805 सैनिकों के रक्षादल पर भंगी कुल के उपप्रधान सेनापति
# धूला धाड़ी वीर योद्धा ने अपने 190 सैनिकों के साथ धावा बोल दिया। शत्रु के काफी सैनिकों को मारकर ये सभी 190 सैनिक एवं धूला धाड़ी अपने देश की रक्षा हेतु वीरगति को प्राप्त हो गए।
. वहां पर 2000 से ऊपर पहाड़ी तीरन्दाज पंचायती सेना में मिल गये थे।
(3)पंचायती सेना के वीर सैनिकों ने तैमूर एवं उसके सैनिकों को हरद्वार के पवित्र गंगा घाट (हर की पौड़ी) तक नहीं जाने दिया। घायल तैमूर को बचाकर उसकी सेना हरद्वार से पहाड़ी क्षेत्र के रास्ते अम्बाला की ओर भागी। उस भागती हुई तैमूरी सेना का पंचायती वीर सैनिकों ने अम्बाला तक पीछा करके उसे अपने क्षेत्र हरयाणा से बाहर खदेड़ दिया।
सेनापति # दुर्जनपाल अहीर मेरठ युद्ध में अपने 200 वीर सैनिकों के साथ दिल्ली दरवाज़े के निकट स्वर्ग लोक को प्राप्त हुये।
इन युद्धों में बीच-बीच में घायल होने एवं मरने वाले सेनापति बदलते रहे थे। कच्छवाहे गोत्र के एक राजपूत ने उपप्रधान सेनापति का पद सम्भाला था।
जोगराज सिंह जी के घायल हो जाने पर तंवर जाट गोत्र के एक जाट योद्धा ने प्रधान सेनापति के पद को सम्भाला था। एक रवा तथा सैनी वीर ने उपसेनापति पद सम्भाले थे।
इस युद्ध में केवल 5 सेनापति बचे थे तथा अन्य सब देशरक्षा के लिए वीरगति को प्राप्त हुये।
इन युद्धों में तैमूर के ढ़ाई लाख सैनिकों में से हमारे वीर योद्धाओं ने 1,60,000 को मौत के घाट उतार दिया था और तैमूर की आशाओं पर पानी फेर दिया।
राजा देवपाल राणा की पंचायती सेना के वीर एवं वीरांगनाएं 35,000, देश के लिये वीरगति को प्राप्त हुए थे।
इस युद्ध में महावीर हरवीर गुलिया ने असंख्य दुष्टों को काट दिया व उन्होंने तैमूर की छाती में हिंदुस्तानी भाला गाड़कर अपने प्राणों की शहादत दी।
इसी घाव के कारण तैमूर अपने देश समरकंद में जाकर मर गया।कुछ भारतीय इतिहासकार लिखते हैं कि तैमूर इस घाव की वजह से रास्ते मे ही मर गया था।
राजा देवपाल राणा, सेनापति महावीर हरवीर गुलिया, प्रधान सेनापति जोगराज सिंह गुर्जर, वीरांगना हरदेई जाट ने इस युद्ध में अपनी अनूठी छाप छोड़ी।
इस तरह हिन्दू वीर जाट सम्राट राजा देवपाल राणा की पंचायती सेना के वीर यौद्धाओं ने इस्लामिक आतंकी तैमूर का अंत कर दिया।